5 SIMPLE TECHNIQUES FOR अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

5 Simple Techniques For अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

5 Simple Techniques For अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

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आचार्य प्रशांत: ईगो (अहंकार) का सांकेतिक, शाब्दिक, आध्यात्मिक सब एक ही अर्थ होता है – ‘मैं’। ‘मैं’ की भावना को अहम्, ईगो कहते हैं।

शब्दों को लिखिए, जैसे- फुटबॉल के खेल से संबंधित शब्द हैं- गोल, बैंकिंग, पासिंग,

आचार्य: check here जब सो जाते हो तो ईगो (अहम्) बचता है?

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प्रश्नकर्ता: क्या अहंकार भी सात्विक, राजसिक, तामसिक होता है? कृपया मार्गदर्शन करें।

प्रश्नकर्ता: तो क्या स्वयं को किसी भी पहचान से परिभाषित करना ही अहम् है?

ये प्रार्थना का असर होता है। लेकिन आप अगर अपनी इतनी सी भी ताक़त का पूरी तरीक़े से उपयुक्त नहीं करेंगे, लगाएँगे नहीं, डर के बैठे रहेंगे, 'मैं क्या करूँ, दुनिया बहुत बड़ी है, मुझे मसल देगी। हाय! मेरा क्या होगा?

सही दिशा में, मुक्ति की दिशा में। 'सही दिशा समझ रहा हूँ और उस दिशा में जो अपनी ओर से कर सकता हूँ, सब कर दिया।’ अगर अपनी ओर से पूरा काम नहीं किया है तो प्रार्थना बेअसर है। उस प्रार्थना का कोई मतलब नहीं।

की थी कहानी से नहीं बल्कि उसमें किसी भी एक विषय पर हम भाषा शिक्षण कर सकते हैं

और क्या? “ चिकन खा, चिकन खा”। वो तुम्हारे ही पीछे क्यों पड़ा था? क्योंकि तुम हो ऐसे कि वो तुम्हारे पीछे पड़ा था। तो तुम ऐसे हो जो परेशान होने को मात्र उपलब्ध ही नहीं है, वो परेशान होने को इच्छुक भी है।

आचार्य: जिस तल की तुम बात कर रहे हो, वहाँ पर लोन नहीं बचता है। वहाँ फिर दूसरी बातें आ जाती हैं। वहाँ फिर लाइफस्टाइल कंसर्नस (जीवनशैली से सम्बंधित मुद्दे) आ जाते हैं। और उसमें भी ज़्यादातर ये नहीं होता है कि, "हमारी लाइफस्टाइल (जीवनशैली) का क्या होगा?" घरवाले। कमा एक रहा होता है, उससे लाभ तो तीन-चार को हो रहा होता है न। तो वो तीन-चार कैसे बर्दाश्त करेंगे कि हमें जो लाभ हो रहा है वो लाभ होना बंद हो जाए?

shut your eyes, have a deep breath, and after you open up them, visualize a beacon of answers brightening the shadowy depths of each dilemma.

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